6.प्रणाली जीवन चक्र

प्रत्येक प्रणाली का एक निश्चित जीवन चक्र होता है,यह प्रणाली की प्रकृति का ही एक अंग है । जब कोई भी प्रणली लगातार कुछ वर्षो तक कार्यशील अवस्था में होती है, तब समय के साथ-साथ होने वाले आंतरिक एवं बाह्राकारकों में परिवर्तन के परिणाम स्वारूप प्रणाली का धीरे-धीरे क्षय होने लगता है, और वह कम प्रभावी हो जाती है। इस परिस्थिति से बचने का उपाय है, वह यह कि समय के साथ-साथ प्रणाली में आवषश्यक परिवर्तन किये जाते रहें। इसी स्तर पर प्रणाली विश्लेषण की भी प्रमुख आवश्यकता रहती है,जिससे की वह उन प्रक्रियाओं व क्षेत्रों को खोजें जिनमें कि परिवर्तन कर इन परिवर्तनों को लागू करें।

परिवर्तनों के द्वारा पुनः प्रणाली कुछ समय तक अच्छी तरह से कार्य़ कर सकेगी और तत्पश्चात् पुनः उसका क्षय होने लगेगा, तब और परिवर्तन कर प्रणाली को फिर प्रभावी बनाना होगा। यह क्रम निरंतर चलता रहता हैं। इसे ही प्रणाली जीवन चक्र कहा जाता हैं।

  

© प्रतिलिप्याधिकार सुरक्षित अटल बिहारी वाजपेयी- भारतीय सूचना प्रोद्यौगिकी एवं प्रबंधन संस्थान, ग्वालियर